मेरी कुछ ग़ज़लें
ज़बां लफ्ज़े मुहब्बत है
दिलों में पर अदावत है ।
न कोई रूठना मनना
यही तुम से शिकायत है ।
कि बस रोज़ी कमाते सब
नहीं कोई हिकायत है ।
मुहब्बत ही तो जन्नत है
अदावत दिन क़यामत है ।
पढ़ो तुम बन्द आँखों से
लिखी दिल पै इबारत है ।
ग़रीबों से जो हमदर्दी
यही सच्ची इबादत़ है ।
कभी यों ग़ज़ल कह लेता
बड़ी उस की इनायत है ।
इक्कीसवीं सदी है इक्कीसवीं सदी है
अब नेकियों पै जीती हर रोज़ ही बदी है ।
इस का न कोई चश्मा न गंगोत्री कहीं पर
बहती ही जा रही यह वक़्त की नदी है ।
पलकें बिछा के बैठे हम उन के रास्ते में
आँखों में गुज़रा जो पल जैसे इक सदी है ।
कैसे मैं आजकल की दुनिया में सफल होता
मेरी ख़ुदी के ऊपर अब मेरी बेख़ुदी है ।
गांधी न बुद्ध गौतम न रिषभ का ज़माना
अब तो ख़ुदा से ऊँची इन्सान की ख़ुदी है ।